शिक्षा: M.Sc. (Botany) pursuing Ph.D.
कविता के क्षेत्र में उपलब्धियां:
* सा.सां.क.सं.अकादमी उत्तर प्रदेश द्वारा "विद्या-वाचस्पति" की मानद उपाधि
* जैन मिलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं विख्यात उपन्यासकार श्री सुरेश जैन 'ऋतुराज' द्वारा काव्य-भूषण सम्मान.
* भारत के अधिकांश प्रदेशो में अखिल भारतीय कवि-सम्मेलनों से सफलतम काव्य-पाठ।
* हिन्दी गीतों पर आधारित ऑडियो सी.डी. "अनुसार" बाज़ार में उपलब्ध।
कवितायेँ....
- गीत....मौसम जो पहले.... (1)
- मुक्तक-१ (1)
- मुक्तक-2 (1)
- शहीद के बेटे की दीपावली... (1)
Tuesday, July 8, 2008
मुक्तक-१
मुक्तक-२
नयन में प्राण अटके हैं चले आओ मेरे प्रियवर।
मैं देखूं राह जीवन भर, तुम्हारी राधिका बन कर॥
अगर सीता मैं बन जाऊं तो तुम भी राम बन जाना।
बना लूंगी तुम्हे भी चाँद, जो मैं बन गई अम्बर॥
गीत....मौसम जो पहले प्यार का आना था आ गया....
आँखों के रास्ते मेरे दिल में समां गया।
न जाने कैसा जादू वो मुझको दिखा गया
आँगन में दिल के वो नई कलियाँ खिला गया।
मौसम जो पहले प्यार का आना था आ गया॥
समझाया दिल को आहटों का डर नही अच्छा।
दिल का धड़कना बात बात पर नही अच्छा॥
यूँ जागना जगाना रात भर नही अच्छा।
कुछ भी समझ ना पाऊ नशा कैसा छा गया।
मौसम जो................................................... ॥
हर दिन है सुहाना सा हर एक रात अलग है।
सावन नया-नया सा है, बरसात अलग है॥
यूँ जिंदगी वही है मगर बात अलग है।
मीठी कसक है जिसकी सितम ऐसा ढा गया॥
मौसम जो................................................... ॥
जब किसी अति-प्रिय के घर आने की सुचना मिलती है, तो प्रेयसी का अपने मन से नियंत्रण खो जाता है। तब कहती हूँ....
अब घर को सजाऊ मैं कभी ख़ुद को सजाऊ।
मैं सब से हर एक बात हर एक राज छुपाऊ॥
सखियों को भी बताऊँ तो मैं कैसे बताऊँ।
दिल को भी कहाँ है ये ख़बर किस पे आ गया॥
मौसम जो................................................... ॥
Sunday, June 29, 2008
शहीद के बेटे की दीपावली...
चारो तरफ़ उजाला पर अँधेरी रात थी।
वो जब हुआ शहीद उन दिनों की बात थी॥
आँगन में बैठा बेटा माँ से पूछे बार-बार।
दीपावली पे क्यो ना आए पापा अबकी बार॥
माँ क्यो न तूने आज भी बिंदिया लगाई है ?
हैं दोनों हात खाली न महंदी रचाई है ?
बिछिया भी नही पाँव में बिखरे से बाल हैं।
लगती थी कितनी प्यारी अब ये कैसा हाल है ?
कुम-कुम के बिना सुना सा लगता है श्रृंगार....
दीपावली पे क्यों ना आए पापा.......................॥
बच्चा बहार खेलने जाता है...और लौट कर शिकायत करता है....
किसी के पापा उसको नये कपड़े लायें हैं।
मिठाइयां और साथ में पटाखे लायें हैं।
वो भी तो नये जूते पहन खेलने आया।
पापा-पापा कहके सबने मुझको चिढाया।
अब तो बतादो क्यों है सुना आंगन-घर-द्वार ?
दीपावली पे क्यों ना आए पापा.......................॥दो दिन हुए हैं तूने कहानी न सुनाई।
हर बार की तरह न तूने खीर बनाई।
आने दो पापा से मैं सारी बात कहूँगा।
तुमसे न बोलूँगा न तुम्हारी मैं सुनूंगा।
ऐसा क्या हुआ के बताने से हैं इनकार
दीपावली पे क्यों ना आए पापा.......................॥
विडंबना देखिये....
पूछ ही रहा था बेटा जिस पिता के लिए ।
जुड़ने लगी थी लकडियाँ उसकी चिता के लिए।
पूछते-पूछते वह हो गया निराश।
जिस वक्त आंगन में आई उसके पिता की लाश।
वो आठ साल का बेटा तब अपनी माँ से कहता है....
मत हो उदास माँ मुझे जवाब मिल गया।
मकसद मिला जीने का ख्वाब मिल गया॥
पापा का जो काम रह गया है अधुरा।
लड़ कर के देश के लिए करूँगा मैं पूरा॥
आशीर्वाद दो माँ काम पूरा हो इस बार।
दीपावली पे क्यों ना आए पापा.......................॥
-अनामिका जैन 'अम्बर'
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