आँखों के रास्ते मेरे दिल में समां गया।
न जाने कैसा जादू वो मुझको दिखा गया
आँगन में दिल के वो नई कलियाँ खिला गया।
मौसम जो पहले प्यार का आना था आ गया॥
समझाया दिल को आहटों का डर नही अच्छा।
दिल का धड़कना बात बात पर नही अच्छा॥
यूँ जागना जगाना रात भर नही अच्छा।
कुछ भी समझ ना पाऊ नशा कैसा छा गया।
मौसम जो................................................... ॥
हर दिन है सुहाना सा हर एक रात अलग है।
सावन नया-नया सा है, बरसात अलग है॥
यूँ जिंदगी वही है मगर बात अलग है।
मीठी कसक है जिसकी सितम ऐसा ढा गया॥
मौसम जो................................................... ॥
जब किसी अति-प्रिय के घर आने की सुचना मिलती है, तो प्रेयसी का अपने मन से नियंत्रण खो जाता है। तब कहती हूँ....
अब घर को सजाऊ मैं कभी ख़ुद को सजाऊ।
मैं सब से हर एक बात हर एक राज छुपाऊ॥
सखियों को भी बताऊँ तो मैं कैसे बताऊँ।
दिल को भी कहाँ है ये ख़बर किस पे आ गया॥
मौसम जो................................................... ॥
7 comments:
Pahle prem ke khubsurat ehsash ko vyaqt karti rachana, Bahut achcha.
Anamika ji
pyar ke ehsas ko sat rango se
rag diya hai aapne.....
Bahut achchhi rachana
अब घर को सजाऊ मैं कभी ख़ुद को सजाऊ।
मैं सब से हर एक बात हर एक राज छुपाऊ॥
सखियों को भी बताऊँ तो मैं कैसे बताऊँ।
दिल को भी कहाँ है ये ख़बर किस पे आ गया॥
मौसम जो...................................................
Badhai....
Aap ki ek najar chahta hoon
"Maa" kavita par
http://dev-poetry.blogspot.com/2008/08/blog-post_3922.html
Note: App apne blog se Word Varification remove kar de, cmments dene me problem karta hai.
Regards
पहले सिर्फ़ सुना था, आज पहली बार.........
लगा
"तुझसे बिछड़ा तो पसंद आ गयी बे-तरतीबी
इससे पहले मेरा कमरा भी ग़ज़ल जैसा था॥"
----------------------मुन्नवर राणा
शुभकामानायें
गोविन्द K. प्रजापत"काका" बानसी
उदयपुर(राजस्थान)
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Its awesome bhabhi....i love your this poem sooooo much
nice poem
Nice ji...
Veri nice poem
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